इंटरनेट पर इस आशय से जुड़ी हुई कहानियाँ देखी जा सकती है , जिनके अनुसार अंतरिक्ष में पेंसिल नहीं ले जा सकते ऐसा नहीं है। समस्या यह थी कि गुरुत्वहीनता की स्थिति में पेन की स्याही बाहर नहीं निकल पाती थी। ऐसे में पेंसिल रखना बेहतर विकल्प था, जिससे किसी भी परिस्थिति में लिखा जा सकता था। एक समय तक अमरीकी अंतरिक्ष यात्री अपने साथ पेंसिल साथ लेकर जाते थे, लेकिन उसके कुछ खतरे थे। पेंसिल कार्बन से बनती है। ऐसे में कार्बन के टूटकर बिखरने का खतरा बना रहता था। यह अंतरिक्ष यान के किसी उपकरण में जा सकता था, जिससे पूरी उड़ान खतरे में आ सकती थी। इसे ध्यान में रखते हुए वर्ष 1965 में नासा ने एक कंपनी से विशेष पेन बनवाए थे। इस वर्ष पॉल सी फिशर नामक वैज्ञानिक ने विशेष पेन का आविष्कार किया था, जो कि गुरुत्वहीनता की स्थिति में भी काम कर सकता था। इसे एंटी ग्रेविटी पेन कहा गया। इस पेन में अंदर से स्याही पर दबाव डालकर उसे बाहर पंप किया जा सकता था। 1967 में अपोलो-1 यान में आग लगने के बाद नासाने इस एंटी ग्रेविटी पेनका परीक्षण किया और फिर इसे अंतरिक्ष यात्रा के लिए स्वीकार कर लिया गया था।
क्या अंतरिक्ष यान में पेंसिल लेकर नहीं जा सकते?
इंटरनेट पर इस आशय से जुड़ी हुई कहानियाँ देखी जा सकती है , जिनके अनुसार अंतरिक्ष में पेंसिल नहीं ले जा सकते ऐसा नहीं है। समस्या यह थी कि गुरुत्वहीनता की स्थिति में पेन की स्याही बाहर नहीं निकल पाती थी। ऐसे में पेंसिल रखना बेहतर विकल्प था, जिससे किसी भी परिस्थिति में लिखा जा सकता था। एक समय तक अमरीकी अंतरिक्ष यात्री अपने साथ पेंसिल साथ लेकर जाते थे, लेकिन उसके कुछ खतरे थे। पेंसिल कार्बन से बनती है। ऐसे में कार्बन के टूटकर बिखरने का खतरा बना रहता था। यह अंतरिक्ष यान के किसी उपकरण में जा सकता था, जिससे पूरी उड़ान खतरे में आ सकती थी। इसे ध्यान में रखते हुए वर्ष 1965 में नासा ने एक कंपनी से विशेष पेन बनवाए थे। इस वर्ष पॉल सी फिशर नामक वैज्ञानिक ने विशेष पेन का आविष्कार किया था, जो कि गुरुत्वहीनता की स्थिति में भी काम कर सकता था। इसे एंटी ग्रेविटी पेन कहा गया। इस पेन में अंदर से स्याही पर दबाव डालकर उसे बाहर पंप किया जा सकता था। 1967 में अपोलो-1 यान में आग लगने के बाद नासाने इस एंटी ग्रेविटी पेनका परीक्षण किया और फिर इसे अंतरिक्ष यात्रा के लिए स्वीकार कर लिया गया था।